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Shayari Rahat Indori

Shayari Rahat Indori

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राहत इंदौरी साहब की शायरी सिर्फ अल्फाज़ नहीं, बल्कि एक एहसास है। उनकी आवाज़, उनका लहजा और उनकी बेबाक शैली शायरी को एक नई पहचान देती है। उन्होंने महफिलों में जो आग लगाई, वो आज भी उनके शब्दों में महसूस होती है।

उनकी शायरी समाज, राजनीति, मोहब्बत और खुद्दारी की अनूठी मिसाल है। हर शेर में एक गहराई होती है, जो सुनने वाले को भीतर तक झकझोर देती है। राहत साहब ने शायरी को सिर्फ किताबों तक नहीं, बल्कि आम लोगों के दिलों तक पहुँचाया।

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यहाँ हम प्रस्तुत कर रहे हैं राहत इंदौरी के 10 लोकप्रिय शेर, जो आज भी महफिलों में गूंजते हैं और सोशल मीडिया पर खूब साझा किए जाते हैं। अगर आपने उन्हें मंच पर नहीं सुना, तो उनकी शायरी पढ़कर ही उनके जादू को महसूस किया जा सकता है।

राहत इंदौरी के चर्चित शेर

बुलाती है मगर जाने का नहीं,
ये दुनिया है इधर आने का नहीं।

अगर खिलाफ हैं होने दो, जान थोड़ी है,
ये सब धुआँ है, कोई आसमान थोड़ी है।

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लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में,
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है।

किसी के बाप का हिन्दुस्तान थोड़ी है,
जो आज हैं हक में, कल खिलाफ होंगे।

उठा लिया है ज़माने ने हौसलों का जनाज़ा,
जो झुक गया है कभी, वो आदमी नहीं है।

बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर,
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ।

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें।

जिनके चेहरे पे नूर होता है,
वो ग़म में भी मशहूर होता है।

मैं जानता हूँ दुश्मन भी कम नहीं,
मगर मेरी तबाही के गुनाहगार तुम भी हो।

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता,
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता।

राहत इंदौरी की शायरी को करें शेयर

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