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Bulleh Shah Shayari

Bulleh Shah Shayari

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सूफी संत बुल्लेह शाह की शायरी का साहित्यिक और आध्यात्मिक संसार बेहद गहरा और विचारोत्तेजक है। उनकी रचनाएँ इंसानियत, मोहब्बत और आत्मा की यात्रा को उजागर करती हैं। Bulleh Shah Shayari आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उनके समय में थी, क्योंकि यह दिल और आत्मा दोनों को एक साथ जोड़ती है।

बुल्लेह शाह के शब्द सरल लगते हैं, लेकिन उनके भीतर छिपा अर्थ जीवन के गहरे सवालों के जवाब देता है। उनकी शायरी हमें यह सिखाती है कि इंसानियत और प्यार से बढ़कर कुछ भी नहीं है। यही वजह है कि उनकी कविताएँ आज भी पढ़ने वालों को आत्मिक सुकून देती हैं।

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कई लोग बुल्लेह शाह की शायरी को जीवन की राह में प्रेरणा मानते हैं। उनकी पंक्तियाँ इंसान को खुद से जोड़ती हैं और अहंकार से दूर ले जाती हैं। ऐसे लोग अक्सर shayari संग्रहों को पढ़कर उनके विचारों से जीवन में बदलाव लाने की कोशिश करते हैं।

बुल्लेह शाह की शायरी का असर सीमाओं से परे है। चाहे हिंदी, पंजाबी या उर्दू में पढ़ी जाए, यह हर दिल तक अपनी गहरी छाप छोड़ती है। उनकी पंक्तियाँ धार्मिक और सामाजिक सीमाओं से ऊपर उठकर इंसान को इंसान से जोड़ती हैं।

Bulleh Shah Shayari

ना मैं मस्जिद ना मैं मंदिर, ना मैं पंडित ना मौलवी

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ना मैं काफिर ना मुसलमान, ना मैं हिंदू ना सिख

ना मैं जन्नत ना मैं दोज़ख, ना मैं खुदा ना मैं खुदा का रूप

ना मैं हिजाब ना मैं नकाब, ना मैं साधु ना मैं फकीर

बुल्ला की जाणां मैं कौन…

इश्क़ दा रोग लगा, तस्बीह ते नमाज़ छूट गई

रब्ब दे घर दी राह पई, हर दिल विच रब्ब लभ गया

पढ़ पढ़ आलिम फाज़ल होया, कदी अपने आप नु पढ़या ही नहीं

जिहड़े दिल नु साफ कर लेने, ओही रब्ब नु पा लेने

बुल्ला शह कहंदा सच्च दा रस्ता, प्यार विच ही लभ लेना

शायरी साझा करने का आनंद

बुल्लेह शाह की शायरी का आनंद तब और बढ़ जाता है जब इसे दूसरों के साथ साझा किया जाए। आप इन पंक्तियों को WhatsApp, Facebook, Twitter और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर आसानी से शेयर कर सकते हैं। इससे न केवल साहित्य का प्रसार होता है बल्कि सकारात्मक विचार भी फैलते हैं।

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